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classes of criminal courts in India भारत में अपराधों के विचारण हेतु दण्ड न्यायालयों की विभिन्न श्रेणियों का वर्णन कीजिए। प्रत्येक मामले में उनके गठन, शक्तियों और अधिकतम दण्डादेश जो वे दे सकते हैं, उनका वर्णन कीजिए।
Describe the various classes of criminal courts in India for trial of offences. Explain in each case their constitution, powers and the maximum sentences which they can award.
उत्तर-
दण्ड न्यायालयों की विभिन्न श्रेणियाँ (Various classes of Criminal Courts)- दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 6 के अनुसार, उच्च न्यायालयों और इस संहिता से भिन्न किसी विधि के अधीन गठित न्यायालयों के अतिरिक्त, प्रत्येक राज्य में निम्नलिखित वर्गों के दण्ड न्याया-लय होंगे, अर्थात्-
(1) सेशन न्यायालय।
(2) प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट और किसी महानगर क्षेत्र में महानगर मजिस्ट्रेट, तथा द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट।
(3) कार्यपालक मजिस्ट्रेट ।
classes of criminal courts in India
(1) सेशन न्यायालय (Sessions Courts)- दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 9 के अनुसार-
(i) राज्य सरकार प्रत्येक सेशन खण्ड के लिए एक सेशन न्यायालय स्थापित करेगी।
(ii) प्रत्येक सेशन न्यायालय में एक न्यायाधीश पीठासीन होगा जिसकी नियुक्ति उच्च न्यायालय द्वारा की जायगी।
(iii) उच्च न्यायालय अपर सेशन न्यायाधीशों (Additional Sessions Judges) और सहायक सेशन न्यायाधीशों (Assistant Sessions Judges) को भी सेशन न्यायालय में अधिकारिता के प्रयोग करने के लिए नियुक्त कर सकता है।
(iv) उच्च न्यायालय द्वारा एक सेशन खण्ड के न्यायाधीश को दूसरे खण्ड का अपर न्याया- धीश भी नियुक्त किया जा सकता है और ऐसी अवस्था में वह मामलों को निपटाने के लिए दूसरे खण्ड के ऐसे स्थान या स्थानों में बैठ सकता है जिनका उच्च न्यायालय निर्देश दे।
(v) जहाँ किसी सेशन न्यायाधीश का पद रिक्त होता है वहाँ उच्च न्यायालय किसी ऐसे अर्जेण्ट (Urgent) आवेदन के जो उस सेशन न्यायालय के समक्ष किया जाता है या लम्बित (Pending) है, अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश द्वारा अथवा यदि अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश नहीं है तो सेशन खण्ड के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वार। निपटाये जाने के लिए व्यवस्था कर सकता है और ऐसे प्रत्येक न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट को ऐसे आवेदन पर कार्यवाही करने की अधिकारिता होगी।
(vi) सेशन न्यायालय सामान्यतः अपनी बैठक ऐसे स्थान या स्थानों पर करेगा जो उच् ) सेशनालय अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे, किन्तु यदि किसी विशेष मामले में, सेशन न्यायालय की यह राय है कि सेशन खण्ड में किसी अन्य स्थान में बैठक करने से पक्षकारों और साक्षियों को सुविधा होगी तो वह, अभियोजन और अभियुक्त की सहमति से उस मामले को निपटाने के लिए या उसमें साक्षियों या साक्षी की परीक्षा करने के लिए उस स्थान पर बैठक कर सकता है।
classes of criminal courts in india सेशन न्यायाधीश या अपर सेशन न्यायाधीश विधि द्वारा प्राधिकृत कोई भी दण्डादेश दे सकता है किन्तु उसके द्वारा दिये गए मृत्यु दण्डादेश को उच्च न्यायालय द्वारा पुष्ट किये जाने की आद. श्यकता होगी।
स्पष्टीकरण- संहिता में प्रयोजन के लिए नियुक्ति के अधीन सरकार द्वारा संघ या राज्य के कार्यकलापों के विषय में किसी सेवा या पद पर किसी व्यक्ति की प्रथम नियुक्ति, पद-स्थापना या पदोन्नति सरकार द्वारा किये जाने के लिए अपेक्षित है।
classes of criminal courts in India इन्दिरा गाँधी हत्याकाण्ड की सुनवाई- यह एक महत्वपूर्ण मामला है इस सम्बन्ध में केहर सिंह एवं अन्य बनाम स्टेट (दिल्ली प्रशासन), A.IR. 1988, S.C 1883 के मामले में उच्च न्यायालय की अधिसूचना के अन्तर्गत मामले की सुनवाई तिहाड़ जेल में की गयी थी इसे इस आधार पर चुनौती दी गयी कि सेशन न्यायालय की बैठक तीस हजारी में होने से तिहाड़ जेल में सुनवाई नहीं की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने तिहाड़ जेल को तीस हजारी कोर्ट की अतिरिक्त बैठक का स्थान मानते हुए वैध ठहराया।
(2) न्यायिक मजिस्ट्रेटों के न्यायालय (Courts of Judicial Magistrates)- दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 11 के अनुसार, प्रत्येक जिले में (जो महानगर क्षेत्र न हो) उतने और उन स्थानों पर जितने और जिन्हें राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श के पश्चात् अधिसूचना (Notification) द्वारा निर्दिष्ट करे, प्रथम वर्ग और द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेटों के न्यायालय स्थापित किये जायेंगे। ऐसे न्यायालयों के पीठासीन अधिकारी उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किये जायेंगे, परन्तु राज्य सरकार उच्च न्यायालय की राय लेने के बाद एक या अधिक न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी या द्वितीय श्रेणी के विशेष न्यायालय किसी विशेष या विशिष्ट श्रेणी के मुकदमों को सुनने के लिए स्थापित कर सकती है तथा जहाँ ऐसा विशेष न्यायालय स्थापित कर दिया जाता है तो वहाँ स्थानीय क्षेत्र का किसी भी मजिस्ट्रेट का न्यायालय उन मुकदमों के विचारण का क्षेत्राधिकार नहीं रखता है जिनके लिए कि विशेष न्यायालय की स्थापना हुई है।
Explain in each case their constitution powers and the maximum sentences which they can award उच्च न्यायालय को जब कभी यह आवश्यक प्रतीत हो तो वह किसी सिविल न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य कर रहे राज्य की न्यायिक सेवा के किसी सदस्य को प्रथम वर्ग या द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ प्रदत्त (Delegate) कर सकेगा।
चौथमल बनाम राजस्थान राज्य, 1982 Cr.L. Cases 460 के मामले में अवधारित किया गया कि धारा 11 के परन्तुक के अधीन नियुक्त किये गये विशेष मजिस्ट्रेट केवल उन्हीं अपराधों का विचारण कर सकते हैं जोकि संहिता की प्रथम अनुसूची में दर्शाये गये हैं। इस प्रकार की नियुक्ति से उनकी शक्ति सत्र न्यायालय की शक्ति के बराबर नहीं हो जाती है।
classes of criminal courts in India मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एवं अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आदि- इस संहिता की धारा 12 में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के सन्दर्भ में उपबन्धित किया गया है, जिसके अनुसार, उच्च न्यायालय, प्रत्येक जिले में (जो महानगर क्षेत्र न हो) एक प्रथम वर्ग को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त करेगा। इसी धारा में यह भी उपबन्धित है सेवाविक पालक किसी प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट को अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट f (Additional Chief Judicial Magistrate) नियुक्त कर सकता है और ऐसे मजिस्ट्रेट को इस के संहिता के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की सब या कोई शक्तियाँ, जिनका उच्च न्यायालय निर्देश दे, प्रदत्त होंगी।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का न्यायालय मृत्यु या आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक की अवधि के लिये कारावास के दण्डादेश के सिवाय विधि द्वारा प्राधिकृत कोई भी दण्डादेश दे सकता है।
दिल्ली न्यायिक सेवा संघ बनाम गुजरात राज्य, (1991)4 S.C.C. 406 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की भूमिका पर टिप्पणी करते हुये स्पष्ट किया कि देश की न्याय प्रणाली का एक तात्कालिक अधिकारी होने के नाते मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का यह कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि अपराधों के अन्वेषण में पुलिस अपनी अधिकार शक्ति का दुरुपयोग न करें। विधि के प्रवर्तन तथा नागरिकों के जीवन और सम्पत्ति हेतु अपराध निवारण में पुलिस की प्रमुख भूमिका है परन्तु उससे यह अपेक्षित है कि वह अपराधियों के साथ अमानवीय व्यवहार न करे, साथ ही मजिस्ट्रेटों का यह कर्तव्य है कि वे अभियुक्त के अन्वेषण तथा विचारण की वैधता को सुनिश्चित करे। इस प्रकार पुलिस तथा न्यायिक मजिस्ट्रेट दोनों के कार्य और उद्देश्य एक-दूसरे के पूरक हैं।
विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट धारा 13 में यह उपबन्धित किया गया है कि यदि केन्द्रीय या राज्य सरकार उच्च न्यायालय से ऐसा करने के लिए अनुरोध करती है तो उच्च न्यायालय किसी व्यक्ति को जो सरकार के अधीन कोई पद धारण करता है या जिसने कोई पद धारण किया है, किसी जिले में, जो महानगर क्षेत्र नहीं है विशेष मामलों के या विशेष वर्ग के मामलों के या साधारणतः मामलों के सम्बन्ध में द्वितीय वर्ग के न्यायिक मजिस्ट्रेट को इस संहिता द्वारा या उसके अधीन प्रदत्त की जा सकने वाली सभी या किन्हीं शक्तियों को प्रदान कर सकता है परन्तु इस प्रकार की कोई शक्ति किसी व्यक्ति को प्रदान नहीं की जायेगी जब तक कि उसके पास विधिक मामलों के सम्बन्ध में इस प्रकार की अर्हता या अनुभव नहीं है जो उच्च न्यायालय नियमों द्वारा विनिर्दिष्ट करे।
इस प्रकार के मजिस्ट्रेट विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट कहलायेंगे और एक समय में एक वर्ग से अनधिक की इतनी अवधि के लिए नियुक्त किये जायेंगे जितनी उच्च न्यायालय, साधारण या विशेष आदेश द्वारा निर्दिष्ट करे।
उच्च न्यायालय विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट को महानगर मजिस्ट्रेट की शक्तियों को प्रयोग करने का अधिकार उस महानगर क्षेत्र के सम्बन्ध में प्रदान कर सकता है। यह अधिकार उसके अपने क्षेत्राधिकार से अलग होगा।
इस संहिता की धारा 15 में उपबन्धित किया गया है कि प्रत्येक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सेशन न्यायाधीश के अधीनस्थ होगा, प्रत्येक अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सेशन न्यायाधीश के साधारण नियन्त्रण के अधीन रहते हुए, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होगा। मुख्य न्यायिक मजिस्ट अपने अधीनस्थ न्यायिक मजिस्ट्रेटों के कार्य के वितरण के बारे में, समय समय पर, ऐसे नियम बना सकेगा या विशेष आदेश दे सकेगा जो इस संहिता के संगत (Consistent) हों।
इस संहिता की धारा 16 के अनुसार, जो महानगर मजिस्ट्रेटों के न्यायालयों का वर्णन करती है, प्रत्येक महानगर क्षेत्र में महानगर मजिस्ट्रेटों के इतने एवं ऐसे स्थानों में न्यायालय राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय से परामर्श के पश्चात् स्थापित किये जायेंगे। इसके लिए अधिसूचना का होना आवश्यक है। ऐसे न्यायालयों के पीठासीन अधिकारी उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किये जायेंगे प्रत्येक महानगर मजिस्ट्रेट के अधिकारों एवं शक्तियों का क्षेत्र महानगर होगा। इस संहिता की धारा 18 के अन्तर्गत विशेष महानगर मजिस्ट्रेट के सम्बन्ध या राज्य सरकार यदि उच्च न्यायालय से में उल्लेख किया गया है। इसके लिए केन्द्रीय यह अनुरोध करे तो उच्च न्यायालय विशेष महानगा मजिस्ट्रेट (Special Metropolitan Magistrate) की नियुक्ति करेगा।
(3) कार्यपालक मजिस्ट्रेट (Executive Magistrate)- दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 20 के अनुसार, राज्य सरकार प्रत्येक जिले और प्रत्येक महानगर क्षेत्र में उतने व्यक्तियों को, जितने वह उचित समझे, कार्यपालक मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकती है और उनमें से एक को जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त करेगी। राज्य सरकार किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को अपर जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकेगी और ऐसे मजिस्ट्रेट को इस संहिता के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन जिला मजिस्ट्रेट की सब या कुछ शक्तियाँ होंगी जोकि राज्य सरकार निर्दिष्ट करे। राज्य सरकार किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को आवश्यकतानुसार किसी उपखण्ड (Sub- division) का भारसाधक बना सकती है और उसको भारसाधन से मुक्त कर सकती है और इस प्रकार किसी उपखण्ड का भारसाधक (Incharge) बनाया गया मजिस्ट्रेट उपखण्ड मजिस्ट्रेट कहलायेगा।
राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा और नियन्त्रण और निर्देशों के अधीन रहते हुए जो वह अधिरोपित करना ठीक समझे अपनी शक्तियों को जिला मजिस्ट्रेट को प्रत्यायोजित कर सकती है।
इस धारा की कोई भी बात तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन, महानगर क्षेत्र के सम्बन्ध में कार्यपालक मजिस्ट्रेट की सभी शक्तियाँ या इनमें से कोई शक्ति पुलिस आयुक्त को प्रदत्त करने से राज्य सरकार प्रवारित नहीं करेगी।
सदानन्द त्रिपाठी (परमहंस) बनाम उ. प्र. राज्य, नि. प. 1982, इलाहाबाद 658 के मामले में याचिकाकर्ता को एक ऐसे जिला मजिस्ट्रेट द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा 4 के अधीन निरोधित किया गया था क्योंकि उस समय नियमित जिला मजिस्ट्रेट अवकाश पर थे। इस मामले में मुख्य विवादास्पद प्रश्न यह था कि क्या एक स्थानापन्न हैसियत से कार्यरत जिला मजिस्ट्रेट राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की धारा 4 के अधीन किसी व्यक्ति के विरुद्ध निरोध का आदेश पारित कर सकता है। उच्च न्यायालय द्वारा अवधारित किया गया कि इस प्रकार नियुक्त किया गया जिला मजिस्ट्रेट दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 20 (3) के अर्थान्तर्गत जिला मजिस्ट्रेट तो है परन्तु उसे राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के अधीन निरोध आदेश पारित करने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह अधिकार केवल नियमित जिला मजिस्ट्रेट को ही प्राप्त है।

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