Best 2025 What do you understand by an offence?अपराध से आपका समझते हैं?

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What do yon understand by an offence? Define and distinguish between the following- Bailable and non-bailable offence Cognizable and non-cognizable offence Full Summons cases and warrant cases. Compoundable and non-compoundable offence Discharge and acquittal.What do you understand by an offence?

What do you understand by an offence

What do you understand by an offence? अपराध की परिभाषा (Definition of offence)- दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (ढ) के अनुसार, “अपराध से कोई ऐसा कार्य या कार्य लोप अभिप्रेत है जो तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा दण्डनीय बना दिया गया हो और इसके अन्तर्गत कोई ऐसा कार्य भी है जिसके आरे में पशु अहिवार अधिनियम, 1871 की धारा 20 के अधीन परिवाद किया जा सकता है।” अपराध शब्द को विशद परिभाषा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 44 में की गयी है। What do you understand by an offence? यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी एवं बच्यों के पालन-पोषण में असावधानी करता है तो वह उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार अपराधी नहीं कहा जा सकता है। अतः यदि कोई मजिस्ट्रेट यह आदेश करता है कि कोई व्यक्ति अपने बच्चों एवं पत्नी के लिए कुछ धन प्रदान करे तो इस प्रकार की भूति (Finding) को अपराध के लिए दण्डित नहीं किया जा सकता है। अपराध शब्द मौलिक fufit (Substantive Law) का अंग है। What do you understand by an offence? (i) जमानतीय अपराध (Bailable offence) जमानत की दृष्टि से अपराध को दो भागों में बाँटा गया है. (1) जमानती अपराध (2) अजमानती अपराध। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2(क) के अनुसार, जमानती अपराध से आशय उस अपराध से है जो ऐसी तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा जमानतीय बताया गया है। जो अपराध जमानतीय बताया गया है उसमें अभियुक्त की जमानत स्वीकार करना पुलिस अधिकारी एवं न्यायालय का कर्तव्य है। उदाहरण-किसी स्त्री की लज्जाभंग करना, मानहानि करना, किसी व्यक्ति को स्वेच्छापूर्वक साधारण चोट पहुँचाना, उसे सदोष रूप से अवरोधित अथवा परिरोधित करना आदि जमानतीय अपराध है। गैर-जमानती अपराध (Non-bailable offence)- दण्ड प्रक्रिया संहिता में गैर-जमानतीय अपराध की परिभाषा नहीं दी गयी है अतः हम कह सकते हैं कि ऐसा अपराध जो जमानतीय नाहीं है एवं जिसे प्रथम अनुसूची में अजमानतीय अपराध के रूप में अंकित किया गया है वह गैर- जमानतीय अपराध है। What do you understand by an offence गैर-जमानतीय अपराध (Non-bailable offence) की मंशा यह नहीं होती कि अभियुक्त व्यक्ति किसी भी स्थिति में जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है। धारा 437(1) के अनुसार, जब कोई व्यक्ति, जिस पर गैर जमानतीय अपराध का अभियोग है, या जिस पर यह सन्देह है कि उसने गैर-जमानतीय अपराध किया है, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार या निरुद्ध किया जा सकता है या उच्च न्यायालय अथवा सेशन न्यायालय से भिन्न न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है तब वह जमानत पर छोड़ा जा सकता है, किन्तु यदि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार प्रतीत होते हैं कि वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दोषी है, तो वह ऐसे नहीं छोड़ा जायेगा। परन्तु न्यायालय निर्देश दे सकता है कि कोई व्यक्ति, जो सोलह वर्ष से कम आयु का है या कोई स्त्री या कोई रोगों या शिथिलाँग व्यक्ति, जो ऐसे अपराध का अभियुक्त है, जमानत पर छोड़ दिया जाये। जमानतीय अपराध गम्भीर अपराध नहीं होते हैं, जबकि गैर-जमानतीय अपराध बहुत गम्भीर होते हैं, जैसे-हत्या, डकैती, बलात्कार।

(ii) संज्ञेय एवं असंज्ञेय अपराध (Cognizable and non-cognizable offences)-

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (ग) के अनुसार, संज्ञेय अपराध से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जिसमें पुलिस अधिकारी अपराधी को प्रथम अनुसूची के या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अनुसार वारण्ट के बिना गिरफ्तार कर सकता है। What do you understand by an offence? किसी अपराधों को कैद में रखने का मुख्य उद्देश्य यह है जिससे कि वह विधि द्वारा प्रदत्त दण्ड को स्वीकार करने के लिए प्रस्तुत हो सके। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु कुछ ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं जिनमें कि न्यायालय को जमानत पर मोचन का स्वविवेकाधिकार (Discretionary power) दिया गया है। ये परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं- What do you understand by an offence? (1) आरोप की प्रवृत्ति एवं गहनता; (2) दण्ड की कठोरता एवं उसकी सीमा जहाँ तक दिया जा सके। (3) अपराधी को जमानत पर छोड़ने से उसके भाग जाने का खतरा; (4) उसका चरित्र; (5) सामाजिक स्तर; (6) अपराध के दुबारा किये जाने का खतरा, (7) साक्षियों को तोडने का खतरा; (8) अपराधी के बचाव की तैयारी का अवसर । दण्ड प्रक्रिया संहिता की प्रथम अनुसूची में यह स्पष्ट किया गया है कि कौन-कौन अपराध संज्ञेय (Cognizable) होते हैं। ऐसे अपराधों में समय का घड़ा ही महत्व होता है तथा जाँच शीघ्रातिशीघ्र हो जानी चाहिए क्योंकि ऐसा अपराध करने वाला व्यक्ति जिसने अपराध किया है उस अपराध को पूर्णतया छिपाने का प्रयत्न करता है एवं यह भी प्रयत्न करता है कि अपराध का सारा सबूत नष्ट हो जाये। ऐसे अपराधों की सूचना जैसे हो पुलिस को प्राप्त होती है वह उस अपराधों को अतिशीघ्र पकड़ने का प्रयत्न करती है तथा मजिस्ट्रेट द्वारा कैद किये जाने का आदेश प्राप्त करने की प्रतीक्षा नहीं करती है अर्थात् बिना वारण्ट के ही गिरफ्तार कर सकती है। What do you understand by an offence? दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (ठ) के अनुसार, असंज्ञेय अपराध (Non-cogniable case) का आशय है-ऐसा मामला जिसमें पुलिस अधिकारी बिना वारण्ट के गिरफ्तार करने का कोई अधिकार नहीं रखता है। असंज्ञेय मामले में पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट की पूर्व आज्ञा के बिना जाँच आरम्भ नहीं कर सकता ये मामले छोटे अपराधों से सम्बन्धित होते हैं तथा समाज को जो क्षति की जाती है वह अपेक्षाकृत कम होती है। वह व्यक्ति जो अपराध द्वारा क्षतिग्रस्त हुआ है मजिस्ट्रेट के सामने अपराधकर्ता की शिकायत करके उस पर कार्यवाही कराने के लिये स्वतन्त्र है। संज्ञेय एवं असंज्ञेय अपराधों में अन्तर (Distinction between cognizable and non- cognizable offence)- संज्ञेय अपराध एवं असंज्ञेय अपराधों में निम्नलिखित अन्तर पाया जाता है- What do you understand by an offence?
क्रमांक संज्ञेय अपराध असंज्ञेय अपराध
1 संज्ञेय अपराध गम्भीर एवं संगीन प्रकृति के होते हैं। असंज्ञेय अपराध सामान्य प्रकृति के होते हैं।
2 संज्ञेय मामलों में पुलिस अभियुक्त को बिना बारण्ट के गिरफ्तार कर सकती है। असंज्ञेय अपराध में पुलिस बिना वारण्ट के गिरफ्तार नहीं कर सकती है।  
3 पुलिस अधिकारी बिना किसी आदेश के अन्वेषण प्रारम्भ कर सकता है।   असंज्ञेय अपराध में पुलिस बिना आदेश के अन्वेषण प्रारम्भ नहीं कर सकती है।  
4 संज्ञेय मामलों में कार्यवाही करने के लिए परिवाद की आवश्यकता नहीं होती है।   असंज्ञेय मामलों में कार्यवाही का प्रारम्भ परिवाद से होता है।  
(iii) समन मामला (Summons case) संहिता की धारा 2(ब) के अनुसार, समन मामले से ऐसा मामला अभिप्रेत है जो किसी अपराध से सम्बन्धित होता है और जो बारष्ट मामला नहीं होता है। समन भामला ऐसे अपराधों से सम्बन्धित होता है जो केवल जुर्माने से या कारावास से दण्डनीय होता है तथा वह कारावास दो वर्ष से अधिक का नहीं होना चाहिए या यदि वह जुर्माना एवं कारावास दोनों से दण्डनीय होता है तो कारावास एक वर्ष से अधिक नहीं होना चाहिए। अधिकांशतया समन मामले शिकायत का परिणाम होते हैं। जब समन मामले में अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के सामने लाया जाता है या वह स्वयं हाजिर होता है तो अभियुक्त को उस अपराध के बारे में जिसका उस पर अभियोग होता है सभी विशिष्टियाँ बतायी जाती हैं तथा उससे पूछा जाता है कि क्या वह दोषी होने का अभिवचन (pleads guilty) करता है अथवा वह प्रतिरक्षा करना चाहता है, किन्तु यथारोति आरोप विरचित करना आवश्यक न होगा। यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिषचन करता है तो मजिस्ट्रेट अभियुक्त के बयान का यथासम्भव उन्हीं शब्दों में लेखबद्ध करेगा जिनका प्रयोग अभियुक्त ने किया है और उसके आधार पर उसे अपने विवेकानुसार दोषसिद्ध (Conviction) करेगा अन्यथा शिकायतकर्ता का परीक्षण करके और अभियोजन के समर्थन में साक्ष्य लेकर विचारण की कार्यवाही करेगा। समन मामले को सेशन के सुपुर्द नहीं किया जाता है क्योंकि मजिस्ट्रेट अभियुक्त को दण्ड देने के लिए पर्याप्त अधिकार रखता है तथा ऐसी सुपुर्दगी के लिए वारण्ट नहीं होता है। What do you understand by an offence? वारण्ट मामला (Warrant case)- संहिता की धारा 2 (भ) के अनुसार, वारण्ट मामले से ऐसा मामला अभिप्रेत होता है जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय किसी अपराध से सम्बन्धित होता है। संहिता की धारा 238 से 243 पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित (Instituted) वारण्ट मामलों के विचारण में प्रयोग की जाने वाली सम्पूर्ण प्रक्रिया का वर्णन करती है जबकि दूसरे मामलों में पालन की जाने वाली प्रक्रिया का वर्णन धारा 244 से धारा 248 तक में किया गया है। समन मामले एवं वारण्ट मामले में अन्तर (Distinction between summon case and warrant case)- समन मामले एवं वारण्ट मामले में अन्तर दिये जाने वाले दण्ड पर निर्भर करता है। ऐसे मामले जिनमें दो वर्ष तक के कारावास का दण्ड या उससे कम उपबन्धित हैं समन मामले के अन्तर्गत आते हैं और जहाँ दो वर्षों से अधिक के कारावास का दण्ड उपबन्धित है उन्हें वारण्ट मामले के रूप में माना जाता है अर्थात् गम्भीर प्रकृति के वादों का परीक्षण वारण्ट के वादों के लिए दी गयी प्रक्रिया के अन्तर्गत किया जाता है एवं हल्की तथा छोटी प्रकृति के अपराधों का परीक्षण समन मामले के लिए निर्धारित प्रक्रिया के अन्तर्गत किया जाता है। (iv) संयोजन योग्य एवं असंयोजन योग्य अपराध (Compoundable and non-com- poundable offence) संहिता की धारा 320 के अन्तर्गत उन अपराधों का वर्णन किया गया है जो मामूली तौर से संयोजन योग्य हैं, जो अपराध इस धारा में वर्णित नहीं हैं वे संयोजन के योग्य अपराध होते हैं। भारतीय दण्ड संहिता के अलावा जो अपराध अन्य अधिनियमों के अन्तर्गत किये जाते हैं वे संयोजन योग्य नहीं होते हैं। धारा 320 के अनुसार, यदि अपराध संयोजन योग्य है तो संयोजन का परिणाम उस अभियुक्त की दोष-मुक्ति (Acquittal) होगा। इस धारा के अनुसार, वैधानिक रूप में अपराध का शमन वे व्यक्ति कर सकते हैं जिनका विवरण धारा 320 में दी गयी सारणी के तीसरे कॉलम में दिया गया है। What do you understand by an offence जब अभियुक्त विचारणार्थ सुपुर्द कर दिया जाता है या जब वह दोषसिद्ध कर दिया जाता है और अपील लम्बित (Pending) होती है तब अपराध का शमन, यथास्थित, उस न्यायालय की इजाजत के बिना अनुज्ञात न किया जायगा जिसे वह सुपुर्द किया गया है या जिसके सामने अपीत सुनी जानी है। शमनीय वाद में समझौता मजिस्ट्रेट को मामले का विचारण करने में क्षेत्राधिकार से वंचित करता है। What do you understand by an offence? धारा 320 के अनुसार, वह व्यक्ति जो इस धारा के अधीन अपराध का शमन करने के लिए अन्यथा सक्षम होता अठारह वर्ष से कम आयु का है या पागल है तब कोई व्यक्ति जो उसको ओर से संबिदा करने के लिए सक्षम हो, न्यायालय की अनुज्ञा से ऐसे अपराध का शमन कर सकता है। (v) उन्मोचन एवं दोष-मुक्ति (Discharge and acquittal) – एक अभियुक्त उस अपराध से जो उसके विरुद्ध लगाया गया है उन्मोचन और दोष-मुक्ति दोनों प्रकार से मुक्त किया जा सकता है. किन्तु दोष-मुक्ति एवं उन्मोचन में निम्नलिखित भिन्नताएँ हैं- (i) धारा 300 के अनुसार, किसी व्यक्ति पर जिसका उन्मोचन हो गया है उसी अपराध के लिए फिर से आरोप लगाया जा सकता है यदि साक्ष्य मिल गये हों, परन्तु उस व्यक्ति को जो दोष-मुक्त किया जा चुका है पुनः उसी अपराध के लिए विचारण नहीं किया जा सकता है।What do you understand by an offence? (ii) उन्मोचन का आदेश निर्णय नहीं होता है, परन्तु दोष मुक्ति का आदेश निर्णय होता है। (iii) उन्मोचन केवल उसी समय होता है जबकि अभियुक्त के विरुद्ध कोई अभियोग पहली दृष्टि (Prima facie) में ही स्थापित नहीं होता है और उससे यह भी नहीं कहा जाता है कि वह अपनी सफाई पेश करे, किन्तु यदि अभियुक्त को सफाई हेतु बुलाया जाता है तथा अभियोजन द्वारा उसके खिलाफ पहली दृष्टि में केस बनाकर उसके विरुद्ध आरोप लगाये जाने के बाद उसे छोड़ा जाता है तो वह दोषमुक्त कहलाता है। What do you understand by an offence? इसे भी पढ़ेः-  एवं और अधिक हिन्दी में जानकारी के लिए यहॉं क्लीक करें।

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