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Contemplating the Concept of Arrest

Contemplating the Concept of Arrest

Contemplating the Concept of Arrest

rights of the arrested person गिरफ्तारी से आप क्या समझते हैं? यह कैसे की जाती है ? गिरफ्तार किये गए व्यक्ति के क्या अधिकार हैं ?

What do you understand by arrest? How is it made? What are the rights of the person arrested?

उत्तर-

गिरफ्तारी (Arrest)- यदि कोई व्यक्ति कोई संज्ञेय, असंज्ञेय, जमानती अथवा गैर- जमानती अपराध कारित करता है तो उस व्यक्ति को कोई पुलिस अधिकारी अथवा कोई अन्य सशक्त व्यक्ति ऐसे व्यक्ति को अपनी अभिरक्षा में लेने के लिए गिरफ्तार कर सकता है। किस्से अभियुक्त को अपनी अभिरक्षा में लेने की इस कार्यवाही को गिरफ्तारी कहा जाता है।

किसी अभियुक्त को निम्नलिखित प्रक्रिया के अनुसार गिरफ्तार किया जाता है-

(1)वारण्ट बिना पुलिस द्वारा गिरफ्तारी (Arrest by police without warrant)- दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41(1) के अनुसार, कोई पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और वारण्ट के बिना किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकेगा-

(क) जो पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में संज्ञेय अपराध करता है।

(ख) जिसके विरुद्ध कोई उचित परिवाद किया गया है, या विश्वसनीय सूचना प्राप्त की गई है, या यह युक्तियुक्त सन्देह विद्यमान है कि उसने ऐसी अवधि के कारावास से, दण्डनीय संज्ञेय अपराध कारित किया है, जो सात वर्ष से कम है या जो सात वर्ष तक की हो सकती है, चाहे जुर्माना सहित हो या रहित हो, यदि निम्न शर्तों का समाधान कर दिया जाता है,

(i) पुलिस अधिकारी का ऐसे परिवाद, सूचना या सन्देह के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसे व्यक्ति ने उक्त अपराध किया है;

(ii) पुलिस अधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी गिरफ्तारी निम्न प्रयोजनों के लिये आवश्यक है-

(क) ऐसे व्यक्ति को कोई अग्रेतर अपराध रोकने के लिये;

(ख) अपराध का उचित अन्वेषण करने के लिये,

(ग)  ऐसे व्यक्ति को अपराध के साक्ष्य को मिटाने या ऐसे साक्ष्य में किसी प्रकार से छेड़छाड़ करने के निवारण के लिये, या

(घ) ऐसे व्यक्ति को मामले के तथ्यों से परिचित किसी व्यक्ति को उत्प्रेरित करने, धमकी देने या वचन देने से निवारित करने के लिये ताकि उसे न्यायालय या पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तथ्य को प्रकट करने से विमुख किया जा सके, या Contemplating the Concept of Arrest

 

(ङ) क्योंकि जब तक ऐसा व्यक्ति गिरफ्तार नहीं किया जाता है, उसकी न्यायालय में उपस्थिति, जब कभी अपेक्षित हो, सुनिश्चित नहीं की जा सकती है; और पुलिस अधिकारी ऐसी गिरफ्तारी करने के दौरान लिखित में अपने कारणों को लेखबद्ध करेगा परन्तु कोई पुलिस अधिकारी ऐसे सभी मामलों में जिसमें किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी इस उपधारा के अधीन अपेक्षित नहीं है, गिरफ्तारी न करने के कारणों को लिखित रूप से अभिलिखित करेगा।

(क) जिसके विरुद्ध यह विश्वसनीय सूचना प्राप्त की गई है कि उसने ऐसा संज्ञेय अपराध कारित किया है, जो ऐसी अवधि के कारावास से दण्डनीय है जो सात वर्ष से अधिक जुर्माना सहित या रहित या मृत्युदण्ड तक हो सकती है, और पुलिस अधिकारी ऐसी सूचना के आधार पर यह विश्वास करने का कारण कि ऐसे व्यक्ति ने उक्त अपराध कारित किया है। Contemplating the Concept of Arrest

(ख) जो या तो इस संहिता के अधीन या राज्य सरकार के आदेश द्वारा अपराधी उद्घोषित किया जा चुका हो; अथवा

(ग) जिसके कब्जे में कोई ऐसी चीज पायी जाये जिसका चुराई हुई सम्पत्ति होने का उचित रूप से सन्देह किया जा सकता हो और जिस पर ऐसी चीज के बारे में अपराध करने का उचित रूप से सन्देह किया जा सकता हो, अथवा

(घ) जो पुलिस अधिकारी को उस समय बाधित करे जब वह अपने कर्तव्य का निष्पादन कर रहा हो या जो विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागा हो या निकल भागने का प्रपत्न करे; अथवा

(ङ) जिस पर संघ के सशस्त्र बलों में से किसी से अभित्याजक होने का उचित सन्देह हो, अथवा

(च) जो भारत से बाहर किसी स्थान में किसी ऐसे कार्य के किये जाने से, जो यदि भारत में किया गया होता तो अपराध के रूप में दण्डनीय होता और जिसके लिए वह प्रत्यर्पण सम्बन्धी किसी विधि के अधीन या अन्यथा भारत में पकड़े जाने का या अभिरक्षा में निरुद्ध किये जाने का भागी है, सम्बद्ध रह चुका है या जिसके विरुद्ध इस बारे में उचित परिवाद किया जा चुका है, या विश्वसनीय इत्तिला प्राप्त हो चुकी है या उचित सन्देह विद्यमान है कि वह ऐसे सम्बद्ध रह चुका है; अथवा

(छ) छोड़ा गया सिद्ध दोष होने पर धारा 356 को उपधारा (5) के अधीन बनाये गए अ किसी नियम को भंग करे, अथवा

(ज) जिसकी गिरफ्तारी के लिए किसी अन्य पुलिस अधिकारी से लिखित या मौखिक अध्यपेक्षा (Requisition) प्राप्त हो चुकी है, परन्तु यह तब जबकि अध्यपेक्षा में उस व्यक्ति का जिसे गिरफ्तार किया जाना हो, और उस अपराध का या अन्य कारण का, जिसके लिए गिरफ्तारी की जानी हो, विनिर्देश हो और उससे यह दर्शित हो कि अध्यपेक्षा जारी करने वाले अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना वह व्यक्ति विधिपूर्वक गिरफ्तार किया जा सकता था।

धारा (41)2 में यह उपबन्धित किया गया है कि धारा 42 के प्रावधानों के अधीन किसी भी व्यक्ति को, जो असंज्ञेय अपराध से सम्बद्ध है या जिसके विरुद्ध परिवाद किया गया है या विश्वसनीय सूचना प्राप्त की गई है या उसके इस प्रकार सम्बद्ध होने का युक्तियुक्त सन्देह विद्यमान है, मजिस्ट्रेट के अधिपत्र या आदेश के सिवाय गिरफ्तार नहीं किया जायेगा।

(3) नाम और निवास बताने से इन्कार करने पर गिरफ्तारी (Arrest on refusal to give name and residence)- दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 42 उन परिस्थितियों का वर्णन करती है जिनमें नाम और निवास बताने से इन्कार करने पर गिरफ्तारी की जा सकती है। धारा 42 के अनुसार, जब कोई व्यक्ति जिसने पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में असंज्ञेय अपराध (Non-cog nizable offence) किया हो या जिस पर पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में असंज्ञेय अपराध करने का अभियोग लगाया गया हो, उस अधिकारी की माँग पर अपना नाम और निवास बताने से इन्कार करे या ऐसा नाम या निवास बताये जिसके बारे में उस अधिकारी को यह विश्वास करने का कारण हो कि वह मिथ्या है तब वह ऐसे पुलिस अधिकारी द्वारा इसलिए गिरफ्तार किया जा सकेगा कि उसका नाम और निवास अभिनिश्चित किया जा सके। जब ऐसे व्यक्ति का सही नाम एवं निवास अभिनिश्चित कर लिया जाये तब वह प्रतिभुओं सहित या प्रतिभुओं रहित (With sureties or without sureties) बन्धपत्र (Bond) निष्पादित करने पर छोड़ दिया जायेगा कि यदि उससे मजिस्ट्रेट के सामने हाजिर होने की अपेक्षा की जाये तो वह उसके सामने हाजिर होगा, परन्तु यदि ऐसा व्यक्ति भारत का निवासी न हो तो वह बन्धपत्र भारत में निवासी प्रतिभू या प्रतिभुओं द्वारा प्रतिभूत किया जायेगा। Contemplating the Concept of Arrest

ऐसा व्यक्ति जिसका सही नाम एवं निवास निश्चित नहीं किया जा सका है या वह बन्धपत्र निष्पादित करने में असफल रहा है या यदि ऐसा अपेक्षित किये जाने पर पर्याप्त प्रतिभू न दे सके तो वह 24 घण्टों से अधिक थाने में गिरफ्तार नहीं रखा जा सकता है तथा उसे तुरन्त क्षेत्राधिकार रखने वाले निकटतम मजिस्ट्रेट के पास भेज दिया जायेगा।

(3) प्राइवेट व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी (Arrest by a private person)- दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 43 के अन्तर्गत निजी व्यक्ति को कुछ दशाओं में किसी व्यक्ति को बिना अधिपत्र के गिरफ्तार करने का अधिकार दिया गया है अर्थात् कोई भी निजी (Private) व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति को, जो उसकी उपस्थिति में अजमानतीय और संज्ञेय अपराध करे या किसी उ‌द्घोषित अपराधी को गिरफ्तार कर सकेगा या गिरफ्तार करवा सकेगा और ऐसे गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को अनावश्यक देरी के बिना पुलिस अधिकारी के हवाले कर देगा या पुलिस अधिकारी की अनुपस्थिति में ऐसे व्यक्ति को अभिरक्षा में निकटतम पुलिस थाने ले जायेगा या भिजवायेगा। यदि यह विश्वास करने का कारण हो कि ऐसा व्यक्ति धारा 41 के उपबन्धों के अधीन आता है तो पुलिस अधिकारी उसे फिर से गिरफ्तार करेगा।

यदि यह विश्वास करने का कारण हो कि उसने असंज्ञेय अपराध किया है और वह पुलिस अधिकारी की माँग पर अपना नाम और निवास बताने से इन्कार करे या ऐसा नाम या निवास बताये जिसके बारे में ऐसे अधिकारी को यह विश्वास करने का कारण हो कि वह मिथ्या है, तो उसके विषय में धारा 42 के उपबन्धों के अधीन कार्यवाही की जायेगी किन्तु यदि यह विश्वास करने का कोई पर्याप्त कारण न हो कि उसने कोई अपराध किया है तो वह छोड़ दिया जायेगा। Contemplating the Concept of Arrest

(4) मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तारी (Arrest by Magistrate)- दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 44 के अनुसार, जब कार्यपालक या न्यायिक मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में उसकी स्थानीय अधि कारिता के अन्दर कोई अपराध किया जाता है तब वह अपराधी को स्वयं गिरफ्तार कर सकता है या गिरफ्तार करने के लिए किसी व्यक्ति को आदेश कर सकता है और तब जमानत के बारे में, इसमें अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अधीन रहते हुए, अपराधी को अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकता है।

गिरफ्तारी कैसे की जाएगी (How will arrest be made) – दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 46 के अन्तर्गत इस सम्बन्ध में निम्नलिखित उपबन्ध किये गए हैं-

(1) गिरफ्तारी करने में पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति, जो गिरफ्तारी कर रहा है, गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति के शरीर को वस्तुतः छुयेगा या परिरुद्ध करेगा, जब तक उसने वचन या कर्म द्वारा अपने को अभिरक्षा में समर्पित न कर दिया हो।

परन्तु यह कि जहाँ किसी स्त्री को गिरफ्तार किया जाना है, वहाँ जब तक परिस्थितियाँ प्रतिकूल न हों, गिरफ्तारी की मौखिक सूचना पर अभिरक्षा में उसके समर्पण की उप- धारणा की जायेगी तथा जब तक परिस्थितियाँ अन्यथा अपेक्षा न करें अथवा जब तक पुलिस अधिकारी महिला न हो, तब तक पुलिस अधिकारी स्त्री की गिरफ्तारी करने के लिये उसके शरीर को स्पर्श नहीं करेगा।

(2) यदि ऐसा व्यक्ति अपने गिरफ्तार किए जाने के प्रयास का बलात् प्रतिरोध करता है या गिरफ्तारी से बचने का प्रयत्न करता है तो ऐसा पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति गिरफ्तारी करने के लिए आवश्यक सभी साधनों को उपयोग में ला सकता है।

(3) इस धारा की कोई बात ऐसे व्यक्ति की, जिस पर मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्ड- नीय अपराध का अभियोग नहीं है, मृत्यु कारित करने का अधिकार नहीं देती है। Contemplating the Concept of Arrest

(4) अपवादिक परिस्थितियों के सिवाय किसी भी स्त्री को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पूर्व गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और जहाँ ऐसी आपवादिक परिस्थितियाँ विद्यमान संवै वहाँ महिला पुलिस अधिकारी द्वारा एक लिखित रिपोर्ट तैयार करके प्रथम वर्ग के उम्र अनु न्यायिक मजिस्ट्रेट से पूर्व अनुमति प्राप्त की जाएगी जिसकी स्थानीय अधिकारिता में अपराध किया गया अथवा गिरफ्तारी की जानी है।

यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को चौबीस घण्टे की अवधि में गया प्रक अधिक के लिए निरुद्ध नहीं रखा जा सकता है। इस सम्बन्ध में धारा 57 में उपबन्धित किया गया से है कि कोई पुलिस अधिकारी वारण्ट के बिना गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उससे अधिक अवधि के लिए अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखेगा जो उस मामले की सब परिस्थितियों में उचित है तथा ऐसी अवधि, मजिस्ट्रेट के धारा 167 के अधीन विशेष आदेश के अभाव में गिरफ्तारी के स्थान से है, मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर, चौबीस घण्टे से अधिक अव की नहीं होगी। Contemplating the Concept of Arrest

गिरफ्तार किये गए व्यक्ति के अधिकार (Rights of the person arrested) – भारतीय निय संविधान का अनुच्छेद 22 गिरफ्तार व्यक्ति को निम्नलिखित अधिकार प्रदान करता है-

(1) गिरफ्तारी के आधार जानने का अधिकार (Right to know the grounds of houarrest)- किसी भी व्यक्ति को, जिसे गिरफ्तार किया गया है गिरफ्तारी के कारणों को शीघ्र से बिना शीघ्र बताए जाने का अधिकार है। यदि गिरफ्तारी के कारणों को देर से बताया जाता है तो उसका पर्याप्त कारण होना चाहिए।

(2) रुचि का वकील नियुक्त करने का अधिकार (Right to appoint advocate of his के choice) जिस व्यक्ति को बन्दी बनाया गया है उसे अपनी इच्छानुसार वकील नियुक्त करने का हिरान अधिकार है। अमेरिका में स्थिति यह है कि यदि निरुद्ध व्यक्ति किन्हीं कारणों से वकील नियुक्त करने में असमर्थ है तो न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह उसके लिए वकील नियुक्त करे, परन्तु के नि भारतीय न्यायालयों पर इस प्रकार की कोई बाध्यता नहीं है। Contemplating the Concept of Arrest

मध्य प्रदेश राज्य बनाम शोभाराम, A.1.R. 1966, S.C 110 के मामले में प्रत्यर्थी के विरुद्ध

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 447 के अन्तर्गत आपराधिक अतिचार करने के अपराध का अभि योग चलाया गया था। उसका परीक्षण न्याय पंचायत की अदालत में किया गया, जिसने उसको 75 रुपये जुर्माने की सजा दी। प्रत्यर्थी को वकील द्वारा अपना बचाव करने की अनुमति नहीं दी गयी थी, क्योंकि पंचायत अधिनियम न्याय पंचायत अदालत के समक्ष वकील के उपस्थित होने का निषेध करता था। सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि परीक्षण वैध है, क्योंकि अभियुक्त ने संवि वकील द्वारा प्रतिरक्षा करवाने का कोई आवेदन नहीं दिया था, परन्तु पंचायत अधिनियम की धारा 63. जिसके अनुसार वकील, को नियुक्त करना मना था, को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया, क्योंकि वह अनुच्छेद 22(1) का अतिक्रमण करती है।

उल्लेखनीय है कि अब मेनका गाँधी के मामले में दिये गए निर्णय एवं उसका अनुसरण करते गिरफ हुए अनेक निर्णयों के परिणामस्वरूप स्थिति यह है कि साधारण विधियों के अधीन गिरफ्तार स्पष्ट किये गए व्यक्ति को न्यायालयों द्वारा विधिक सहायता प्रदान किया जाना एक विधिक बाध्यता है की ज गयी है।

हुस्नआरा खातून बनाम बिहार राज्य, A.IR. 1979. S.C. 1377 के मामले में अवधारित व्यक्ति किया गया कि प्रत्येक सिद्धदोष व्यक्ति, जो निर्धनता या किसी अन्य कारण से अपने बचाव के वह अ लिए अधिवक्ता नियुक्त नहीं कर सकता है उसे निःशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करने का विहित

संवैधानिक अधिकार है। यदि ऐसी परिस्थिति में उसे निःशुल्क सहायता प्रदान नहीं की जाती है तो अनुच्छेद 22 का उल्लंघन होने के कारण उसका परीक्षण अवैध हो जाएगा। Contemplating the Concept of Arrest

(3) 24 घण्टे के अन्दर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किए जाने का अधिकार (Right to be presented before Magistrate within 24 hours)- किसी भी व्यक्ति को जिसे बन्दी बनाया गया है, 24 घण्टे के अन्दर उसे निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इस प्रकार किसी भी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करने का उद्देश्य बन्दी व्यक्ति को शीघ्र से शीघ्र अपनी रिहाई प्राप्त करने का अवसर प्रदान करना है, यदि गिरफ्तारी आरम्भ से ही अवैध है, तो उसे रिहा कर दिया जायेगा।

सी. बी. आई. बनाम अनूप जे. कुलकर्णी, (1992)3 S.C.C. 141 के मामले में यह अवधारित किया कि यदि किसी व्यक्ति को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 57 के अधीन गिरफ्तार किया गया है तो उसे 24 घण्टे के अन्दर अन्दर नजदीकी मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इस मामले में इसके अतिरिक्त भी गिरफ्तारी के सम्बन्ध में विस्तृत रूप से मार्गदर्शक नियम प्रतिपादित किये गये हैं, जिनके अभाव में गिरफ्तारी अवैध हो जाती है।

(4)24 घण्टे से अधिक निरोध मजिस्ट्रेट के आदेश बिना नहीं (No detention beyond 24 hours except by order of the Magistrate)- किसी भी व्यक्ति को 24 घण्टे के पश्चात् बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के हिरासत में नहीं रखा जा सकता है। पंजाब राज्य बनाम अजब सिंह, A.I.R. 1953. S.C 10 के मामले में अपहृत व्यक्ति (उद्धार एवं प्रत्यावर्तन) अधिनियम को विधिमान्य घोषित किया गया तथा कहा गया कि इस अधिनियम के अधीन गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को समय के अन्दर निकटतम कार्यभारी अधिकारियों को हिरासत में देना अनुच्छेद 22(1) के अधीन गिरफ्तारी का निषेध नहीं माना जा सकता है। Contemplating the Concept of Arrest

इस प्रकार, उपर्युक्त चारों मूल अधिकार बन्दी व्यक्ति को प्राप्त हैं; परन्तु इन उपर्युक्त नियमों के निम्नलिखित दो अपवाद हैं-

(क) यदि कोई व्यक्ति विदेशी शत्रु है तो उसे यह मूल अधिकार प्राप्त नहीं होंगे। विदेशी शत्रु उस व्यक्ति को समझा जायेगा जो उस देश का नागरिक हो जिसके साथ भारत युद्धरत् हो।

(ख) यदि किसी व्यक्ति को निवारक निरोध विधि के अन्तर्गत बन्दी बनाया गया है तो उसे उपर्युक्त मूल अधिकार प्राप्त नहीं होंगे।rights of the arrested person

(5) गिरफ्तारी के कारण जानने का अधिकार (Right to know the causes of arrest)- संविधान का अनुच्छेद 22(5) गिरफ्तार व्यक्ति को दो अन्य अधिकार प्रदान करता है-

(अ) गिरफ्तारी के आधारों को जानने का अधिकार;

(ब) गिरफ्तारी आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन करने का अधिकार।

अनुच्छेद 22(5) निरोध आदेश जारी करने वाले प्राधिकारी को यह निर्देश देता है कि वह गिरफ्तार व्यक्ति को यथाशीघ्र उसके गिरफ्तारी के कारणों से अवगत कराये। गिरफ्तारी के आधार स्पष्ट एवं बोधगम्य होने चाहिए। यदि कारण अस्पष्ट या असम्बद्ध हैं तो गिरफ्तारी अवैध घोषित की जा सकती है।

जयनमल प्रताप मल बनाम भारत संघ, A.I.R. 1982, S.C. 1500 के मामले में निरुद्ध व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारणों को अंग्रेजी भाषा में लिखकर दिया गया था जबकि यह ज्ञात था कि वह अंग्रेजी नहीं जानता है। उच्चतम न्यायालय द्वारा अवधारित किया गया कि अनुच्छेद 22(5) में विहित गतों का समुचित रूप से पालन नहीं किया गया है अतः निरोध अवैध है।

धनंजय दास बनाम जिला मजिस्ट्रेट, AIR 1982, SC. 1315 के मामले में अवधारित किया गया कि यदि स्पष्ट एवं निश्चित आधारों में कोई अस्पष्ट आधार शामिल किए जाते हैं तो वह निरोध को अवैध बना देंगे। कोई आधार स्पष्ट है या नहीं, यह प्रत्येक मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों के ऊपर निर्भर करता है।

शफीक अहमद बनाम जिलाधिकारी मेरठ, AIR 1990. SC. 220 के मामले में यह अवधारित किया गया कि यदि निरोध के कई कारणों एवं आधारों में कोई एक अवैध है, तो भी राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के अन्तर्गत किया गया निरोध अविधिमान्य एवं अवैध नहीं होगा।

(6) अभ्यावेदन देने का अधिकार (Right of representation)- निरुद्ध व्यक्ति को निरोध आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन प्रस्तुत करने के लिए शीघ्रातिशीघ्न अवसर दिया जाना चाहिए। चूंकि अभ्यावेदन प्रस्तुत करने के लिए कुछ तथ्य भी आवश्यक हैं, अतः निरुद्ध व्यक्ति के माँगने पर कुछ तथ्य भी देने चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 22(5) के अन्तर्गत समुचित प्राधिकारी निरुद्ध व्यक्ति के अभ्यावेदन पर यथासम्भव शीघ्र विचार करने के लिए आबद्ध है। निरुद्ध व्यक्ति के द्वारा निरोधम के आदेश के विरुद्ध दिये गए अभ्यावेदन के निपटारे में यदि विलम्ब होता है जिसके लिए राज्य ने उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया है तो इससे अनुच्छेद 22(5) का उल्लंघन होता है एवं निरोध आदेश अवैध हो जाता है। Contemplating the Concept of Arrest

जय नारायण शुक्ला बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, ALR 1970. S.C. 675 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा कि निरुद्ध व्यक्तियों के अभ्यावेदन में निम्नलिखित चार सिद्धान्तों का अनुसरण किया जाता है-

  1. समुचित प्राधिकारी निरुद्ध व्यक्ति को अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का अवसर देने के लिए एवं उसके अभ्यावेदन पर यथासम्भव शीघ्र विचार करने के लिए आवद्ध है।
  2. समुचित प्राधिकारी द्वारा निरुद्ध व्यक्ति के अभ्यावेदन पर विचार किया जाना एवं सलाहकार बोर्ड द्वारा उसके अभ्यावेदन पर विचार किया जाना दोनों ही अलग-अलग हैं।
  3. समुचित प्राधिकारी द्वारा विचार हेतु कितना समय लिया जाना चाहिए। इस बारे में कोई निश्चित एवं कठोर नियम निर्मित नहीं किया जा सकता है।
  4. समुचित सरकार को निरुद्ध व्यक्ति के अभ्यावेदन सहित मामले को सलाहकार बोर्ड को भेजने से पूर्व उस अभ्यावेदन पर अपनी राय और निर्णय दे देना चाहिए। यदि समुचित सरकार निरुद्ध व्यक्ति को रिहा कर देगी तो सरकार उस मामले को सलाहकार बोर्ड के पास नहीं भेजगी, परन्तु यदि पह व्यक्ति रिहा नहीं किया जाता है तो सरकार उसके मामले को सलाहकार बोर्ड के पास भेजेगी।

राजामल बनाम तमिलनाडु राज्य, A.I.R. 1999, S.C. 684 के मामले में सरकार ने विभिन प्राधिकारियों से टिप्पणियाँ प्राप्त करके सम्बन्धित पत्रावली अगले दिन प्रस्तुत कर दी। अपर सबिव ने उसके दूसरे दिन वह पत्रावली सचिव को सौंप दी। इसके पश्चात् पत्रावली मन्त्री महोदय को सौंपी गयी जो यात्रा पर थे। मन्त्री महोदय ने पाँच दिनों के पश्चात् आदेश पारित किया किन्तु इठने विलम्ब का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया था। उच्चतम न्यायालय द्वारा अवधारित किया गया कि प्रतिवेदन पर विचार करने एवं आदेश पारित करने में हुए विलम्ब का कोई स्पष्टीकरण न होने के कारण निरोध असंवैधानिक हो गया। केवल यह कहना कि मन्त्री महोदय यात्रा पर थे इसलिए वर पाँच दिनों पश्चात् ही आदेश पारित कर सके, न्यायोचित स्पष्टीकरण नहीं था जबकि अनुच्छेद 21 के अधीन एक नागरिक की स्वतन्त्रता का प्रश्न अन्तर्ग्रस्त था। Contemplating the Concept of Arrest

अपवाद – संविधान के अनुच्छेद 22(6) में अनुच्छेद 22(5) का एक अपवाद निहित है। अनुच्छेद 22(6) आदेश देने वाले प्राधिकारी को उन तथ्यों को प्रकट करने से अस्वीकार करने का अधिकार प्रदान करता है जिन्हें प्रकट करना वह जनहित के विरुद्ध समझता है। कौन से तथ्यों को निरुद्ध व्यक्ति को दिया जाए या कौन-से तथ्य जनहित में प्रकट न किये जाएँ, इसका निर्धारण करने का अधिकार कार्यपालिका का है। Contemplating the Concept of Arrest

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